आपको यह पुस्तक इसलिए खरीदनी चाहिए क्योंकि यह आपको डॉ. भीमराव अंबेडकर के दृष्टिकोण से बौद्ध धर्म के उदय और उसकी सामाजिक-सांस्कृतिक चुनौतियों की गहन समझ देती है। डॉ. अंबेडकर ने बौद्ध धर्म को सामाजिक क्रांति के रूप में देखा और ब्राह्मणवादी प्रतिक्रांति से उसकी अवनति और पतन पर विचार किया। इस पुस्तक में उनके विचार और विश्लेषण आपको भारत के सामाजिक सुधार और धार्मिक इतिहास के सबसे महत्वपूर्ण पहलुओं से जोड़ते हैं।
यह संस्करण बिल्कुल नया है, कुल 332 पृष्ठ, उच्च गुणवत्ता वाले 65 GSM पेपर, A5 आकार (15 x 2.5 x 21 सेमी, 400 ग्राम) में उपलब्ध, और सावधानीपूर्वक श्रिंक-रैप में पैक किया गया है। यह पुस्तक सीमित स्टॉक में उपलब्ध है और प्रीपेड ऑर्डर पर फ्री शिपिंग के साथ आती है, जिससे आप तुरंत इस दुर्लभ और संग्रहणीय पुस्तक को सुरक्षित कर सकते हैं।